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रंग व्यंग्य साहित्य, शीर्ष पर राजनीतिज्ञ

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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१२-13 मार्च को होगा राजनीतिक व्यंग्यकारों का होली मिलाप
भारतीय हिंदी साहित्य मैं व्यंग्य चाहे कितना ही क्यों न लिखा जाये प्रचलित नहीं हो पाता | व्यंग्य को समझने के लिए व्यंग्यकार के साथ सामान्य ज्ञान भी आवश्यक होता है | यही कारण है कि व्यंग्य साहित्य उत्थान नहीं कर पाता है | कुछ व्यंग्यकारों का जमघट ही आपस मैं एक दूसरे को वाह वाही देकर संतुष्टि प् लेता है |अतः इस व्यंग्य साहित्य विधा के उत्थान के लिए राजनीतिज्ञों ने बीड़ा उठा लिया है | राजनीतिज्ञ किसी भी पार्टी का हो उसका सामान्य ज्ञान उत्तम होता है अतः उसको व्यंग्य करके आत्म सुख तो मिलता ही है ,साथ ही अपनी पार्टी के मनोबल बढ़ाने मैं भी सहयोग मिलता है|विश्व साहित्य मैं उपमा मैं कालिदास की कोई बराबरी नहीं कर सकता है ,किन्तु कालिदास गुजरे युग की बात हो गयी है | जब राज तंत्र था ,जहाँ केवल एक राजा को या उसके गुणगान करने वाले कवि को ही यह अधिकार प्राप्त था|

अब आधुनिक लोकतान्त्रिक युग है जहाँ अपनी अभिव्यक्ति का समान अधिकार सभी को प्राप्त है | उपमाओं को स्थापित करने मैं राजनीतिज्ञ कालिदास से अधिक ही हैं क्योंकि कालिदास तो इनाम ही पाते होंगे किन्तु राजनीतिज्ञ तो मान सम्मान धन वैभव सत्ता सभी कुछ हासिल कर लेता है | अतः राजनीती की तरफ प्रयाण मैं व्यंग्य अति आवस्यक हो चूका है | और उस सत्ता को बनाये रखने के लिए व्यंग्य वाणों से विपक्षियों को बराबर आहत करते रहना भी राज धर्म बन चूका है |

साहित्यकार अपने को कितना भी बड़ा विद्वान् क्यों न समझें या पूर्व स्थापित विद्वान ही क्यों न हों उनको पढ़ना या समझना पाठकों के लिए व्यर्थ ही होता है ,क्योंकि उस पर किसी प्रकार की क्रिया- प्रतिक्रिया या बहस नहीं छिड़ती है | और उनके व्यंग्य बुलबुलों की तरह विलीन हो जाते हैं | दूसरी तरफ किसी राजनीतिज्ञ का किया व्यंग्य बहस का कारक बन कर साहित्य मैं स्थापित हो जाता है | विभिन्न टी वी चैनलों पर भयंकर बहसें छिड़ जाती हैं | व्यंग्य लोक प्रियता के चरम पर स्थापित हो जाता है और राजनीतिज्ञ तो मानो सिंघासन पर ही पाता है | अब साहित्य किसी विद्वान से सृजित हो सम्मानित नहीं हो पाता है| उसमें राजनीतिज्ञ के साथ मीडिया का तड़का लगाना जरुरी हो गया है ,तभी वह सार्थक होता है | वर्ना साहित्यकारों की अब कोई जरुरत नहीं है|

राजनीतिज्ञों का व्यंग्य सत्तारूढ़ों को हटा सकता है उन्हैं रावण सिद्ध कर, सत्ता हथिया सकता है | धन वैभव युक्त सत्ता पाते राजनीतिज्ञ व्यंग्यकार सही अर्थों मैं साहित्यकार बन गया है | जिस राजनीतिज्ञ के जितने तीखे व्यंग्य होंगे उसे ही धन बैभवयुक्त सत्ता पाने के चांस ज्यादा होते हैं | जनता जनार्दन साहित्य को पढ़ते पढ़ते विद्वान हो चुकी है किन्तु साहित्यकारों के व्यंग्य से उसे आनंद नहीं मिलता| राजनीतिज्ञों के द्वारा सृजित व्यंग्यों से (,जिसमें मीडिया का तड़का बराबर लगा हो )उन पर प्रभाव गहराई तक पड़ता है | तभी जनता को ज्ञान होता है कि कौन रावण है और कौन राम | किसको वोट देने से विकास होगा | किसको वोट देने से धर्म ,जाति बची रहेगी | कौन वास्तविक हरिश्चन्द्र है कौन जुमलेवाला ,| किस व्यंग्य का क्या अर्थ है | किसकी कथनी और करनी मैं फर्क है|

गुरु बृहष्पति से विद्वान साहित्यकारों द्वारा रचित व्यंग्य कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाते हैं | गुरु शुक्राचार्य की तरह सत्ता को पुनः दिला सकने की क्षमता वाली मीडिया ही विद्वता पूर्ण प्रभाव छोड़ती है | और जिसको मीडिया प्रभाव पूर्ण व्याख्यित कर देती है वही राजनीतिज्ञ व्यंग्य साहित्यकार सत्तारूढ़ हो जाता है | राजनीतिक गुरु शुक्राचार्य की राजनीती पहिले रावण और फिर चाणक्य नीति से सम्मानित हुयी | इसमें धर्म वही जो क्रिया के बराबर प्रतिक्रियात्मक व्यंग करता रहे | मौन का मतलब मुर्ख या कमजोर | मौन धारण किये रहना अब विद्वता का परिचायक नहीं वरन उसको गधा का परिचायक मान लिया जाता है और उससे सब कुछ छीनना सुगम बन जाता है | गधा और कुत्ता दो बिलोम भाव सूचक हैं | गधा सब कुछ छिन जाने पर भी मौन धारण किये रहता है ,जबकि कुत्ता आरम्भ से ही भोंकता चिल्लाता सब कुछ झपट लेता है| .राजनीती मैं इन दोनों जीवों का महत्त्व बहुत होता है | राजनीतिज्ञ अपनी सत्ता के लिए अपने को गधा या कुत्ता भी स्वीकार करता उनके महत्त्व का गुणगान करता रहता है |

महाकवि कालिदास तो ऊट्र ऊट्र (ऊँट ) से मुर्ख से विद्वान बने | किन्तु राजनीतिज्ञ भी कम कवि नहीं होते वे भी गधा और कुत्ता से प्रेरणा लेते अपनी विद्वता सिद्ध करते सत्ता मार्ग पर चल सफल होते हैं | किसी को भी गधा या कुत्ता सिद्ध कर देना कुशल साहित्य दर्शाता है | गधे को कुत्ता या कुत्ते को गधा सिद्ध कर देने मैं महारत ही कुशल राजनीतिज्ञ साहित्यकार की पहिचान बन जाती है | राजनीती मैं रहना है तो यह भूल जाना पड़ेगा दुर्बल को न सताईये ,जाकी मोटी हाय | राजा करोङों मैं एक ही होता है जो करोड़ों को परास्त करके ही बनता है | दुनियां मैं भारतीय साहित्य कोई महत्त्व नहीं छोड़ पाता है | मुफलिसी मैं जी रहे भारतीय साहित्यकार नए पैदा होने वाले साहित्य कारों मैं भय पैदा कर देते हैं | जबकि दुनियां के अन्य देशों के साहित्यकार मौज मस्ती मैं रहते हैं | किन्तु अब भारतीय राजनीतिज्ञ व्यंग्य कारों के धन वैभव युक्त सत्ता सुख से उन्हैं भी ईर्ष्या होगी | अब भारतीय राजनीतिक व्यंग्य साहित्य विश्व मैं शीर्ष पर सम्मान से देखा जायेगा | राजनीतिक व्यग्य साहित्य का विश्वगुरु भारत ही कहलायेगा |

होली पर हास्य व्यंग्य यौवन पर होता है किन्तु व्यंगों का अधिपत्य सब कुछ मटियामेट कर देता है | जैसे विभिन्न रंगों से ओतप्रोत कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाता और भयंकर शोर हुल्लड़ता सब कुछ मटियामेट कर देती है | किन्तु राजनीती मैं पक्षियों के लिए हास्य पैदा करता व्यंग्य विपक्षियों पर तीखा प्रहार कर देता है | तिलमिलाया विपक्षी भी अपनी पिचकारी से उससे भी तीखा व्यंग का प्रहार कर देता है | जैसे होली मैं आरम्भ मैं मर्यादा पूर्ण व्यंग रंग भरे जाते हैं किन्तु होली के यौवन पर आते आते मर्यादाओं को त्याग देते हैं | व्यंगों को त्याग गाली गलौज ,कपडे फाड़ना ,मार पीट सब कुछ चरम पर होता है | और होलिका दहन के बाद सब कुछ शांत हो होली मिलाप मैं गले मिला जाता है | ठीक वैसे ही राजनीती मैं भी हास्य ,व्यंग्य ,गाली गलौज ,मारपीट आदि के बाद पुनर्मिलन हो सरकार बना ली जाती है |

होली का आरम्भ बसंत पंचमी पर बसंत ऋतू के आगमन से हो जाता है | हास्य व्यंग्य से भरपूर बैठकी होली का आरम्भ हो जाता है ,जिसका अंत होलिका दहन के बाद होली मिलाप पर ही होता है | होली मिलाप, हास्य व्यंग्य ,गाली गलौज ,कपडे फाड़ना के बाद ही होता है | ऐसे ही राजनीतिज्ञों की होली भी बैठकी होली के बाद हास्य व्यंगों से सराबोर प्रचार कर रही है | कितने तीखे व्यंग्य रंगों से प्रहार हो रहा है | व्यंग रंगों से सराबोर द्रष्य हास्य भी पैदा कर रहा है | व्यंग्य रंगों से सने राजनीतिज्ञ कभी रावण से दीखते हैं तो कभी जानबर गधा ,कुत्ता बिल्ली या शेर| कोई लूटेरा नजर आता है ,तो कोई चोर ,कोई भ्रष्टाचारी लग रहा है तो कोई काला काले धन वाला …कोई आतंकवादी तो कोई बलात्कारी |

अपने अपने दृष्टिकोण हैं राजनीतिज्ञों के किन्तु कोई साफ सुथरा भी नजर आता है तो भी उस पर व्यंग्य बाणों से तो प्रहारित कर ही दिया जाता है कि वह ‘रेनकोट’ पहिनकर ही बाथ रूम मैं नहाने की कला जानता होगा| कुछ भी हो इन सभी राजनीतिज्ञों का होलिका मिलान १२-13 मार्च को होना ही हैं सब कुछ गिले शिकवे भुलाकर गले मिलते नयी सरकार बन ही जाएगी | कोई अपने घर मैं ही मिलाप करेगा कोई दूसरे के घर मैं जाकर | होली के काले पीले केमिकल रंग तो बहुत दिनों तक नहीं छूटते किन्तु राजनीतिज्ञों के भयंकर से भयंकर रंग जल्द ही छूटते मिलाप कर सरकार बना लेते हैं

होली तो साल मैं एक बार ही आती है किन्तु राजनीतिज्ञों की होली तो सदाबहार होती है ,जिसका आनंद दर्शक विभिन्न चेनलों पर समय समय पर देखते आनंदित होते रहते हैं| दुनियां के भारत मैं जैसे होली एक अनोखा त्यौहार है तो राजनीती भी अनोखी होली की तरह यहाँ सब कुछ हुड़दंग के बाद भुला दिया जाता है|

ॐ शांति शांति शांति

 

डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।

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