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कविता, उपमा और उसके प्रकार

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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व्यंग..

आजकल साहित्य सृजन राजनीतिज्ञ करने लगे हैं| उपमा मैं कालिदास को महान माना जाता है| किन्तु विद्वता से पाहिले वे भी मुर्ख थे | उनको विद्वान भी विद्वानों ने ही बनाया था | आजकल के कवि ह्रदय राजनीतिज्ञ कविता रचते उपमाएं तो कर बैठते हैं किन्तु तीखी उपमाएं कर बैठते हैं | एक साधारण से ज्ञान से तो उनकी उपमाएं उनके ज्ञान को उपजाती हैं किन्तु राजनीती उनको नकार देती हैं उसमें शुक्राचार्य से विद्वानों की तत्काल प्रतिक्रियाएं उन्हें विद्वान से मुर्ख सिद्ध कर देती हैं |

व्यापारी, जो किसी वस्तु को खरीदता और बेचता है| यह पुलिंग शब्द है| हर पुलिंग का स्त्रीलिंग भी होता है  और वैश्य का स्त्रीलिंग बना वैश्या….| अब यदि कोई व्यापारी व्यक्ति पुरुष है तो वैश्य ही कहलायेगा किन्तु यदि स्त्री है तो वैश्या ही कहलाएगी| यह है मुर्ख सम्राट कालिदास से कवि का ज्ञान| यहाँ राजनीतिज्ञ का अल्प ज्ञान ही कहा जायेगा |

कविता मैं भाव की प्रधानता होती है| यहाँ स्त्री लिंग या पुलिंग से मतलब नहीं होता भाव से मतलब होता है | वैश्या अपने तन को ही बेच सकती है बेचने के लिए केवल तन ही होता है ,जिसका व्यापर घृणित माना जाता है| कुछ और बेचने वाली व्यापारी(वैश्य ) ही कहलाएगी न की वैश्या| राजनीतिज्ञ कवि का भाव भी गलत नहीं रहा होगा| उसने केवल पुरुष और स्त्री भाव ही देखा | एक ब्राह्मण का स्त्रीलिंग ब्राह्मणी सम्मान जनक ही होता है ,किन्तु वैश्य का वैश्या घृणित ही होगा|

एक राजनीतिज्ञ कवि इसके भाव को क्या जाने …? उसने तो सोचा था मेरी कविता पर खूब वाह वाही होगी | राजनीतिज्ञ से कवि बनकर सम्मान का पात्र बनूँगा | किन्तु अभागा अभी तक छुपते छुपाते अभी तक यह नहीं समझ पाया की उसने गुनाह क्या किया है| कालिदास ने उपमाएं की तो महान कवि कहलाए किन्तु उसने की तो उसे पार्टी निकाला और जान के भी लाले पड़ गए| कालिदास तो मुर्ख पाहिले थे किन्तु बाद मैं काली के भक्त बनकर विद्वान कवि कहलाए | उनकी उपमाओं की तरह कविता करना क्या गुनाह हो गया? और भी राजनीतिज्ञ कालिदास की तरह उपमाएं करते कविता पाठ करते रहते हैं किन्तु वे क्यों नहीं प्रताड़ित किये जाते?

ओम शांति शांति

डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।

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