शनि शिंगणापुर मंदिर एक महिला के शनि सिला के चबूतरे पर अभिषेक करना एक अनिष्टकारी माना गया जिसकी परिणीति कोलकाता का ब्रिज का ध्वस्त होकर २५ लोगों की असमय मौत से हुयी | गंगाजल से शुद्धिकरण के बाद फिर एक बार और शनि सिला को अपवित्र कर दिया गया | और परिणाम केरल के पुत्तिंगल मंदिर की त्रासदी हुयी और ११० लोगों को जीवित दाह संस्कार सहना पड़ा | करीब ४०० लोग घायल हुए |…………………………….. जगतगुरु शंकराचार्य जी ने महिलाओं को शनि से दूर रहने को पाहिले ही चेताया था | अहंकारी महिलाओं ने धर्म का तिरस्कार किया और फल भुगता | माना जा रहा है की मंदिर मैं मरने वाले लोगों मैं महिलाएं ही अधिक थी | …………….अब एक बार फिर चेता रहे हैं की महिलाएं इस मंदिर को अपवित्र न करें वर्ना महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ेंगे और रेप अधिक होंगे | ………………………….आखिर एक विद्वान शंकराचार्य की पदवी पर स्थापित व्यक्ति के सन्मार्ग को क्यों नहीं माना जा रहा है | .……..शनि एक क्रूर पाप गृह माना जाता है ,जिसकी दृष्टि मात्र से ही भगवन शिव के पुत्र गणेश की गर्दन शरीर से अलग होकर नष्ट हो गयी थी | शनि स्वयं भी दृष्टि पात नहीं करना चाहता था | इसीलिए शनि को देव मंदिर मैं स्थान नहीं दिया जाता है | अलग थलग किसी पीपल के ब्रक्ष पर ही उसे स्थापित कर पूजा की जाती है | ………………..एक मुस्लमान
.एक मुस्लमान साईं बाबा को मंदिर मैं क्यों स्थापित किया जा रहा है उसे भी क्यों नहीं शनि सा व्यव्हार किया जा रहा है क्यों देव मंदिरों मैं स्थापित करके देवताओं के प्रभाव को नगण्य किया जा रहा है यदि ऐसा कर रहे हो तो भुगतो महाराष्ट्र के सूखे अकाल को ……? ………….अन्य देवता तो किसी भूल चूक से कामना पूर्ती मैं देर मात्र ही कर सकते हैं | उन्हें कुछ भी उलाहना देकर भी शांति पेयी जा सकती है किन्तु शनि को न्याय का देवता माना जाता है जो तुरंत गलतियों का खामियाजा भुगता देता है |.……………….. शिव तो इतने भोले होते हैं की उन्हें भोले भंडारी ही कहा जाता है |……………………………….आखिर क्यों महिलाओं को अपवित्र माना जाता है ….? यह सभी जानते हैं मृत शरीर का साथ पूजन मैं देवताओं के लिए सबसे अशुद्ध माना जाता है शमसान से लौटकर पूर्ण तयह शुद्ध होकर ही देवताओं के पूजन को किया जाता है | यहाँ तक की किसी के घर मैं कोई मृत्यु हो गयी हो तो उसे एक वर्ष तक देवकार्यों के लिए अशुद्ध माना जाता है | इन्हीं मृत कोशिकाओं अण्डों के निष्प्रयोज्य रक्त का वहन करती महिलाएं इसीलिये अशुद्ध मानी जाती हैं | यहाँ तक की तुलसी के पौधे को यदि कोई अशुद्ध महिला छू देती है तो वह पौधा मुरझा कर सूख जाता है | .………….शिंगणापुर मैं इसीलिए शनि को बिना किसी छत के अलग थलग स्थापित किया गया है | किसी भी देवता की नयी मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही पूजन योग्य सिद्धिकरी माना जाता है | किन्तु यदि वह मूर्ति यदि ४०० सालों से लाखों लोगों द्वारा पूजी जाती रही है तो उसकी सिद्धि दात्री प्रतिष्ठा उसी रूप मैं हो जाती है जिस रूप मैं उसे पूजा जाता रहा है |देवताओं मैं क्षुद्र समझा जाने वाला शनि जब देवताओं का साथ नहीं पा सकता है तो उसे क्यों महिलाएं शिंगणापुर मंदिर की मान्यता को भंग करके उसके कोप का भागी बन रही हैं | …...क्यों “आ बैल मुझे मार्” का मुहावरा सार्थक कर रही हैं …….? ….. क्या किसी अनिष्ट की आशंका से ऐसे क्रूर पापी गृह को जबरदस्ती धर्म विरुद्ध केवल अहंकारवश पूजा जाना चाहिए ….? ……………………………..जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म २ सितम्बर १९२४ को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराजवेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब १९४२ में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और १९ साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक डाल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। १९५० में वे दंडी सन्यासी बनाये गए और १९८१ में शंकराचार्य की उपाधि मिली। १९५० में ज्योतिष्पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।…………………………….इतने विद्वान धर्म शास्त्रों के ज्ञाता अनुभवी बुजुर्ग की अपनी सिद्धियां ही होंगी जो महिलाओं को एक सद्गुरु की तरह सन्मार्ग प्रदान कर रहे हैं | देवताओं के गुरु बृहस्पति सा ही हितोपदेश है उनका …..| .…..गृह दशाएं तो यही कह रही है की गुरु बृहस्पति बक्री होकर चांडाल गृह राहु के साथ स्थित हैं अतः अपना शुभ प्रभाव खो चुके हैं उनकी कोई नहीं सुनेगा | .एक देव गुरु बृहस्पति ही हैं जो प्रभावशाली हों तो लोक हित कर सकते हैं | .राक्षस गुरु शुक्र (मीडिया ) तो सौम्य तो हो सकते हैं किन्तु हित अपने अज्ञान से राक्षशों का हित ही सोचेंगे | …….……………..शनि भी बक्री होकर और मंगल की क्रूरता से और भी अनिष्टकारी हो गया है | सभी क्रूर पापी गृह अवश्य ही और भी अनिष्टता करेंगे उनकी मन मानी होगी |सूखा ,अकाल ,आतंकवादी गति विधियां भूकम्प ,महिलाओं के प्रति अत्याचार आदि निष्कंटक होते रहेंगे | अगस्त तक का समय महा अनिष्टकारी है……………………………….इसलिए शनि से पंगा मत ले नारी ………………………………...ओम शांति शांति शांति
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