जीत राम मांझी विहार के अभूतपूर्व मुख्यमंत्री ,एक अलौकिक दर्शन के रचियता बन गए हैं | उनका दर्शं आम जनता के लिए मार्ग दर्शक ,जीने की कला सीखा सकता है | इस दुनियां मैं जटिलताओं के रहते सुख पूर्वक कैसे रह सकते हैं ,यही सीख देता है |शराब कौन नहीं पीता..अगर नहीं पीता तो कैसे दुनियां जीने देगी किन्तु अधिकता से मत पियो ,यदि पी भी लो तो घर पर आकर सो जाओ और सुबह अपने काम पर लग जाओ | यही है जीने की कला | चाणक्य ने कहा है जो तुम हो वैसा मत दर्शाओ | हरिश्चंद्र हो भी तो अपने को दुष्ट बाहर से दर्शाकर ही जी सकते हो ,अन्यथा दुनियां नोच नोच कर खा जाएगी | यदि दुष्ट स्वाभाव के हो तो अपने को हरिश्चंद्र सा दिखाओ | वर्ना राक्षस मानकर दुनियां मार डालेगी | अपने पर हो रहे अत्याचार को छुपाओ मत जग जाहिर करो ,तभी दुनियां की सहानुभूति पा सकोगे | दलित अपने पर हो रहे अत्याचार को छुपाते रहते हैं ,इसीलिये दलित ही बने रहते हैं | ………………………..ईश्वर ने मनुष्य बनाये हैं सब समान हैं उनको जीने का समान अधिकार है | ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र मैं विभाजित नहीं किया जा सकता | शूद्र मैं भी दलित ,महादलित | यह कैसा अन्याय है | अब कोई ब्राह्मण है ही नहीं | जब ब्राह्मण है ही नहीं तो ब्रह्म ज्ञान से हम दलितों और महादलितों पर ही अत्याचार क्यों | क्या हम महादलित माटी के माधो क्यों समझे जाते हैं | बहुत सेवा कर ली इन उच्च जातियों की | अब हमें भी राजनीती आ गयी है | हम भी व्यवसाय कर सकते हैं | क्षत्रिय की तरह लड़ भी सकते हैं | कूटनीति भी हमें आ गयी है | भारत के दलितों ,महादलितों चेतो जागो ,एक महादलित से कहा जा रहा है की तुम अपना स्वधर्म का पालन करो |.…हम क्षुद्रों का काम यदि ब्राह्मण क्षत्रिय ,वैश्यों की सेवा करना ही धर्म है तो मुझे बताओ कौन धर्म से शास्त्रानुकूल ब्राह्मण है ,वैश्य है ,क्षत्रिय है जिसकी सेवा हम शूद्रों मैं भी दलित महादलित करें | ….सब अपने अपने स्वधर्म से भटक चुके हैं | जब कोई स्वधर्मी है ही नहीं तो हमसे अपने स्वधर्म के पालन को क्यों दबाब बनाया जा रहा है | ………...मायावती जी भी दलित से क्षत्रिय धर्म अपना चुकी हैं | क्षत्रिय का स्वधर्म शूरवीरता ,तेज ,धैर्य ,चतुरता ,और युद्ध मैं न भागना ,दान देना ,स्वामीभाव है | …....मैं धर्म कर्म से क्षत्रिय हो चूका हूँ इसलिए सभी कर्म क्षत्रिय के अपनाना मेरा स्वधर्म बन चूका है | अब चतुराई से ,धैर्य से ,युद्ध ही करूंगा ,अंत समय तक युद्ध करना ही मेरा धर्म बन चूका है | अब मैं महा दलित नहीं रहा , जो सेवा भाव से शरणागत होकर सेवक बन जाऊंगा | साम ,दाम ,दंड ,भेद सभी क्षत्रिय कर्म से राज काज सम्भालना मेरा धर्म हो चूका है | …………………………….मैं महात्मा विदुर नहीं बनना चाहता जो सिर्फ बिदुर नीति के लालच से अपने को दलित ही बने रहने दे | मैं गांधी दर्शन की तरह …मांझी दर्शन बनाऊंगा | महात्मा गांधी और महात्मा विदुर नहीं बनना मैंने | दलितों ,महादलितों के उद्धार जो करना है मैंने | …..मुख्यमंत्री बन चूका हूँ तो अंत तक मुख्यमंत्री बना रहूंगा | मेरे से अब पद छोड़कर अपने स्वधर्म पालन करो का उपदेश देने वाले यह कौन होते हैं | अब मेरा स्वधर्म क्षत्रिय ही है | मेरा स्वधर्म अपने साम्राज्य को बढ़ाकर प्रधानमंत्री बनने का होगा न की लौट कर महादलित बनने का | ………………………………………………………………………………… गीता मैं भगवन कृष्ण ने कहा है ……...अथ चेत्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि | ततः स्वधर्मं कीर्तिम च हित्वा पापमवाप्स्यसि ||………(.यदि तू धर्म युक्त युद्ध नहीं करेगा तो स्वधर्म और कीर्ति खोकर पाप को प्राप्त होगा )………………………………………………………………..मांझी बेडा पार लगाता है | मांझी की नाव को नष्ट करने वाले कैसे पार पाएंगे खुद भी नष्ट भ्रष्ट हो जायेंगे | इतना सामान्य ज्ञान तो एक कालिदास को भी हो सकता है | समझो चेतो जागो ,वहकावे मैं मत आओ, समझौता कर लो मुझे अपने स्वधर्म पालन करने दो | …………………………………………………………ओम शांति शांति
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