.किसी पात्र पत्रिका का व्यंग बाण जब किसी धर्म या जाति विशिष्ट पर पड़ता है जिसके धर्म के खिलाफ हो तो वह भी तामसिक ही कहलायेगा | अपनी पत्रिका के विक्रय को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया जाता है | चर्चित बनी चीज अवश्य विकती है | जिस पर व्यंग किया उसी के समर्थकों को बदनाम भी कर दिया | ऐसी तामसिक व्यंग मैं अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता मानी जाती है | इसमें अच्छे बुरे का विचार नहीं किया जाता है |
व्यंग व्यंग न होकर गालियां हो जाती हैं | और गलियां उसी की सही जाती हैं जो अपना हो | टीनएजर बच्चे दिल खोलकर आपस मैं गाली गलौज करते भी खुसी से सहन करते साथ साथ रहते हैं | किन्तु किसी बाहर के लड़के की गाली को किसी कुत्ते की तरह जबाब अवश्य देते हैं |
व्यंग व्यंग कितना सुंदर शब्द है व्यंग ,लगता है किसी ने रंग डाल दिया हो | टेड़े मेढे रंगीले होली के चेहरे याद आ जाते हैं | किसी पर व्यंगात्मक चेहरा बनाये व्यंगात्मक टीका टिप्पणी जिस पर की जाती है उलझ ही जाता है | हंसें ,रोएँ ,या लड़ें..| किन्तु अन्य आस पास के सुनने देखने वाले लोगों के लिए अवश्य ही हंसी ,मुस्कराहट ल देती है | व्यंग इन्हीं अस पास के सुनने देखने ,पड़ने वाले लोगों को खुश करने के लिए ही लिखे, बोले जाते हैं | जिस पर व्यंग किया जाता है उसकी भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता | व्यंग बच्चे के पैदा होते ही आरम्भ हो जाता है उस पर टीका टिप्पणी तुरंत आरम्भ हो जाती है | बच्चा तो इन व्यंगों की प्रतिक्रिया नहीं कर पाता | किन्तु जैसे जैसे बड़ा होता जाता है आस पास के परिवेश से व्यंग बाण आरम्भ होते बच्चा समझने लगता है | कुछ न कुछ प्रतिक्रिया अवश्य करता है | …………………………...यही व्यंग बाणों की वर्षा जब यौवन प्राप्त युवतितियों पर युवकों द्वारा होती है तो वह लड़कियों को छेड़ना छेड छाड़ कहलाती है | किसी को गुदगुदी होती है तो किसी को अपमान का आभास होता है | अपमान महसूस करने वाली युवतियां प्रतिक्रिया मैं जूते चप्पल ,गाली की वर्षा करने लगती हैं | कुछ अपने लोगों से शिकायत करके दण्डित भी करवा देती हैं | कभी कभी भयंकर मारकाट भी हो जाती hai ……………………….व्यंग भी तीन प्रकार के होते हैं सात्विक …राजस …तामसिक …| ……………………………………..मनोरंजक बनाना ही जिसका ध्येय हो ,जिसका फल का कोई उद्देश्य न हो…सात्विक होते हैं | ………………………… राजस जिसके उद्देश्य किसी फल की इच्छा लेकर हो | प्रतिक्रिया हो और उसका लाभ उठाया जाये | ……………और तामसिक वे व्यंग होते हैं जो कुड बुद्धी से युक्त आतंक फैलाने या निरुद्देश्य होते हैं | जो कहीं भी कभी भी प्रकट होकर भय पैदा कर देते हैं | ……………. सात्विक व्यंग सदाबहार होते हैं किन्तु लोकप्रियता नहीं पाते हैं | ………………………………………….राजस व्यंग का एक उद्देश्य अवश्य होता है जिससे व्यंग करता उसकी प्रतिक्रिया से अपनी कार्य सिद्धी करता है | नरेंद्र मोदी जी के व्यंग इसी श्रेणी मैं आते हैं | कांग्रेस ,राहुल गांधी ,सोनिया गांधी , मनमोहन सिंह ,पर व्यंग बाण की बौछार कर करके उन्हें धराशायी कर सत्ता पाई | ………………………………………………...किसी लड़की को पटाने ,या पुरुष को पटाने के भी राजस व्यंग ही कारगर होते हैं | सात्विक व्यंग लाखों मैं एक ही कारगर हो पाता है | युक्ति पूर्ण राजस व्यंग करके ही किसी लड़की या लड़के को पटाया जाता है | ……………………….किन्तु तामसिक व्यंग से लड़का या लड़की डर या घृणा करने लगती है | किसी दबंग का ही तामसिक व्यंग बाण कभी कभी सफल हो पाता है | किन्तु मानसिक स्थिरता इसमें नहीं हो पाती है | ……………………………………….|…..भारत के प्रधानमंत्री ने भारत के लोगों से अपील की कि लोगों को आलोचना करनी चाहिए न कि आरोप लगाने चाहिए।..प्रधान मंत्री जी हम तो व्यंग करके भी मार खाते हैं | आरोप लगाना या आलोचना करना तो शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा ही किया जा सकता है | शक्ति से ही शक्ति बड़ाई जा सकती है | जैसे धन से धन बढ़ाया जाता है | लोगों को अपनी शक्ति अनुसार ही व्यंग ,आरोप या आलोचना करनी चाहिए | लेकिन बुद्धिमान लोग बलि का बकरा भी ढूंढ लाते हैं और सर्व शक्ति पा लेते हैं | ऐसे लोग सामने नहीं आते हैं | अपनी शक्ति के अनुसार व्यव्हार नहीं करने वाले मार अवश्य ही खाते हैं | .राजनीती और व्यवसाय मैं अपनी बुद्धी बल से समयानुसार आरोप या आलोचना के साथ साथ व्यंग भी सर्व प्रकार के सात्विक ,राजस ,तामस प्रयोग मैं लए जाते हैं | तभी तो एक साधारण व्यक्ति विश्व के सबसे बड़ा व्यवसायी बन जाता है | एक चाय वाला सर्वोच्च पद प्रधान मंत्री तक पा लेता है ………………………….महान व्यंगकार खुशवंत सिंह तक को कहना पड़ा कि न कहु से दोस्ती न कहु से बैर ....| क्यों नहीं ऐसी तामसिक पत्र पत्रिकाओं को बंद किया जाता ,जो आतंक का कारक बने | या व्यंग पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया जाता | आलोचना ,या आरोप सशक्त व्यक्तियों द्वारा होते हैं वे उसे झेल लेंगे | …………………...इस सत्य को कौन दुनियां की सरकारों को समझाए …? ……..…………………………………………सबसे ज्यादा व्यंग पति पत्नियों के बीच ही होते हैं और दिन रात कलेश का कारण बन जाते हैं | मरते मरते भी व्यंग करना नहीं भूलते हैं | काश .. व्यंग नहीं करते तो सुगम जीवन साथी बन पाते | विदेशों मैं तो सर्वाधिक होने वाले तलाक इन्हीं व्यंग बाणों के कारण होते हैं | भारत मैं तो मजबूरी होती है संयुक्त परिवार इनको सहकर ,अगली पीढ़ी को सहने की सीख देते हैं | कोई बात नहीं आज बहु बन कर सहो, कल तो सास बन कर व्यंग बाण मारना ही है | ………………..घर मैं किसी व्यंग करने वाले की दूरी बांयी जाती है ,चाहे पिता हो माता हो सास हो बहु हो …| दैनिक जागरण भी अपने हाथों को देखकर या भगवन की मूर्ती देख कर ही करनी पड़ती है | ऑफिस मैं भी किसी क्रूर व्यंग करने वाले बॉस से दूरी बनाये रखो तभी भलाई समझी जाती है | पता नहीं नजर पड़ते ही क्या सुन्ना पड जाये ..? | दैनिक जागरण कराने वाले का भी यही धर्म बन जाता है कि वह किसी पापी व्यंग से अपनों को दूर ही रखे | ………………………..होली तो बसंत मैं आकर एक बार ही रंगों से रंगती है किन्तु व्यंग तो सारे जीवन बसन्ती व्यंग रंगों से रंगती रहते है | …………………..ओ बसन्ती पवन पागल न जा रे न जा रोको कोई …………………………….लेकिन मैं तो यही कहूँगा …………………………………………………ओ व्यंगी ….धर्म पागल न आ रे न आ रोको कोई …..| ………………………………………………..ओम शांति शांति शांति
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