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भूतों का घर शमशान नहीं,मनुष्य है,सतीश जर्कीहोली जी

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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.आखिर भयभीत व्यक्ति को ही क्यों शिकार बनाता है भूत …..? भूतों पर विश्वास करने वाले व्यक्ति अचानक भूत का अहसास पाते एक भयंकर विजली के शॉक से भी हजार गुना तेज शॉक महसूस करता है | यानि की रक्त का संचार शॉक की तरह मष्तिष्क मैं जाता है ,रक्त नलिकाएं खाली होकर वायु से भरकर या वैक्यूम पैदा करते विकृति पा लेती हैं | मन मष्तिष्क ,हृदय सब गड़वड़ा जाता है और व्यक्ति भूत वाधा ग्रष्ट कहलाता है | इसीलिये भूत वाधा से बचने के लिए भयविहीन करने वाली युक्तियाँ कारगर होती हैं | जैसे आग , हथियार , हनुमान चालीसा ,अपने इष्ट का स्मरण आदि आदि | ………………….गरुड़ पुराण के अनुसार अंतिम क्रिया कर्म से वंचित आत्माएं ही भूत योनि मैं विचरती रहती हैं | …………………………………………………………………………………………..भूत के विषय मैं भगवन श्रीकृष्ण गीता मैं कहते हैं ……? …………………………………….…सम्पूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल मैं ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और रात्री के प्रवेश काल मैं सूक्ष्म शरीर मैं लीन होते हैं | सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार पर स्तिथ हैं ,किन्तु उनमें मैं स्तिथ नहीं हूँ | मेरे संकल्पों द्वारा उत्पन्न होने से सम्पूर्ण भूत मुझमें स्तिथ हैं ऐसा जान | कल्पों के अंत मैं सब भूत मेरी प्रकृति मैं लीन होते हैं और कल्पों के आदि मैं उनको फिर रचता हूँ | ……………………….अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वाभाव के बल से परतंत्र हुए इस सम्पूर्ण भूत समुदाय को बार बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ | भूतों को पूजने वाले भूतों को ही पाते हैं | मैं सब भूतों मैं सम भाव से व्यापक हूँ ,न कोई मेरा प्रिय है न अप्रिय | …………जिस क्षण मनुष्य भूतों के पृथक पृथक भाव को एक परमात्मा मैं ही स्तिथ तथा उस परमात्मा से सम्पूर्ण भूतों का विस्तार देखता है ,उसी क्षण वह सच्चिदानंद ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है | ……...मेरी महान ब्रह्म रूप मूल प्रकृति सम्पूर्ण भूतों की योनि है अर्थात गर्भाधान का स्थान है और मैं उस योनि मैं चेतन समुदाय रूप गर्भ को स्थापन करता हूँ | उस जड़ चेतन के संयोग से सब भूतों की उत्पत्ति होती है | ………………………………………….तामस व्यक्तियों के पूज्य ही होते हैं भूत ..|……… तामस वे व्यक्ति होते हैं जो शिक्षा से रहित ,घमंडी ,धूर्त , और दूसरों की जीविका का नाश करने वाला तथा शोक करने वाला ,आलसी और साधारण से काम को भी कल पर छोड़ते पूरा नहीं करते हैं | जिनके कर्म परिणाम ,हिंसा , और सामर्थ्य को नहीं विचारते ,अज्ञानी की तरह होते हैं | तामसी लोगों की बुद्धि अधर्म को भी धर्म मान लेती है | दुष्ट बुद्धिवाला तामसी व्यक्ति निद्रा ,भय , चिंता ,और दुःख को तथा उन्मत्तता को नहीं छोड़ता है | ………………………………..सात्विक व्यक्ति भगवत स्मरण और सद्विचारों ,सद्कर्मों से आत्मबली हो निर्भयी जाता है | और भूत बाधा उसे नहीं सताती है | राजस लोग राक्षशों को पूजते हैं |और उनके कर्म बहुत परिश्रम युक्त भोगों को चाहने वाले ,अहंकारयुक्त होते हैं | आशक्ति से युक्त ,कर्मों के फल को चाहने वाला और लोभी ,दूसरों को कष्ट देने वाला ,अशुद्धाचारी ,हर्ष शोक वाला ही होता है राजस व्यक्ति | ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि धर्म और अधर्म को तथा कर्तव्य ,अकर्तव्य को भी यथार्थ नहीं जानती है | ऐसे लोग अत्यंत आसक्ति से ही धर्म ,अर्थ , और कामों को करते हैं | इसी लिए भोगकाल मैं सुखी और परिणाम मैं दुखी रहते हैं | ऐसे लोग तिगणम् वाजी से भयभीत नहीं होते भूत बाधा से दूर ही रहते हैं | …………………………………………………………………………………...ओम शांति शांति शांति

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