Menu
blogid : 15051 postid : 803138

मोदी मन्त्र …बर्तमान मैं जीने वाला ही ” स्वधर्मी ”

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
  • 216 Posts
  • 910 Comments

”आलोचना का एक निश्चित समय होता है ,आप जैसे मनीषी यदि संयम छोड़ कर राजधर्म की इस प्रकार व्याख्या करने लगेंगे तो सत्ता के गुरुर से विलग अपने कठिनतम धर्म का लालन पूर्ण निष्ठा से करने वाला योगी राज पुरुष भी विचलित हो जायेगा ! याद रखिये उन्हें ही पप्पू फेंकू आदि उपधियाँ चुनाव से पहले ट्वीटर पर देती जाती रही है ,जन संभावनाओं के युग को पलटने दीजिये !इतनी जल्दी लोग अपना घर भी नही ठीक क्र पाते है ये तो एक महा देश है ! महती जनसंख्या बहु विचार धारा बहु धर्मावलंबियो का वतन है !पूरी तरह अधोपतन को जाती एक विशाल ज चेतना है !क्षमा करेंगे यदि कुछ अनुचित लिखा हो सादर ”!!…………………………….……………………………………….जो समय की धार मैं नहीं चलता वह नष्ट भ्रष्ट हो जाता है यही राज धर्म होता है | कूप मंडूप मत बने रहो ,यही राज धर्म होता है | ………………………………………………………………….विचारों के मंथन मैं एक धर्म कवि धर्म भी नजर आता है | यह भी राजनीती सा ही नजर आता है | कवि भी भावनाओं के मंथन के लिए शब्दों का एक ऐसा माया जाल रच देता है कि पाठक उसमें गहराई तक डूबते सत्य को भूल जाता है | राजनीती की तरह विचार भी कहीं से चुरा लिए जाते हैं ,शब्द भी कहाँ कहाँ से संग्रह करते व्यूह रचना बना ली जाती है | एक व्यक्ति मैं हजारों सूर्य सी चमक पैदा कर दी जाती है | रूप, चन्द्र को भी धवष्ट कर देता है | कवि किसी को भी रावण या राम सिद्ध करने मैं सक्षम होता है | किसी भी दवा को अमृत सिद्ध कर दिया जाता है | मुर्दे मैं भी जान डाल देने की क्षमता वाली दवा मृत संजीवनी सूरा भी सिद्ध कर दी जाती है | सीधा साधा रूप का वर्णन करते कौन कवि की महत्ता को समझ पायेगा | जब बाजार मैं उत्पाद को बेच नहीं पाये ,किसी को ईश्वर अवतार सिद्ध नहीं कर पाये ,राजा को पराक्रमी नहीं सिद्ध कर पाये तो कैसे समझा जायेगा कि कवि महान है | राजा कैसे सम्राट बन पायेगा | जब राजा स्वरुप, कवि की कल्पनाओं ,उक्तियों से महिमा मंडित होगा तभी जन समुदाय आरती उतारने को लालायित होगा| | …………….महर्षि बाल्मीकि ,तुलसीदास ने रामायण नहीं रची होती ,तो कौन कैसे राम रावण को पहिचान पाता | महाभारत के चरित्रों को मन माकिफ रचने की महान क्षमता भी लेखक की ही रही | कौन अच्छे चरित्र का है कौन चरित्र हीन, यह भी कवि लेखक ही सिद्ध कर सकता है | …………………………………………………………………कवि धर्म एक महान धर्म है जिसके विना प्रकृति शून्य ही होती है | दो आँखों वाले को देखते हुए भी कुछ नजर नहीं आ सकता है जब तक कवि रूप माधुर्य ,पराक्रम का वर्णन नहीं करता है | अंधे धृष्टराष्ट्र को भी दिव्य दृष्टी वाले संजय ने अपनी काब्यीक दृष्टी से महाभारत का सटीक वर्णन किया था | कवि लेखकों की म्हणता महत्ता राजा महाराजा बखूबी जानते रहे थे तभी तो अपने नवरत्नों मैं उनकी स्थापना करना उनका धर्म होता रहा था | सत्य क्या है ….अगर नजर आ गया तो कवि लेखक किस काम का | उपमा कालीदासशय की सी पहिचान नहीं हो पाई तो कैसे कालिदास ….| रूप सौंदर्य की काब्यीक प्रस्तुति यदि कामनाओं का संचार न कर सके तो व्यर्थ ही प्रयास होगा | …………………………………….समय की धार बदली कवि लेखक तो सिर्फ पडा ही सकता है अब तो युग इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का है …. अब तो साक्षात दिखाकर भी कवि की लेखक की कल्पनायें आरती उतरने को भक्ति को लालायित कर रही हैं | सत्य को दिखाकर ,निष्पक्ष रहकर कैसे कोई चैनल पहले स्थान तक जा सकता है ,कुछ तो रास्ता चुनना ही होगा तभी तो राज दरबार की कृपाएं बनी रहेंगी | धन्य हो कवि धर्म ,राज धर्म भी तुम्हारे बिना कुछ नजर नहीं आ सकता | राजा यदि प्रजा के हित के लिए सर्वश्व भी न्योछाबर कर दे ,हरिश्चंद्र सा राज पाठ ,पत्नी पुत्र को भी न्योछाबर कर दे तो भी नगण्य ही होगा यदि कवि लेखक द्वारा वर्णित न हो | किन्तु कवि लेखक द्वारा वर्णित कुकर्म भी सत्कर्म सा पूजक बन जाता है | ………………………………………………...कवि का स्वधर्म यही है इसीलिये कवि अपने स्वधर्म को पालन करते संवेदनाओं को उपजते व्यक्ति को पूजक बना देता है | ब्रह्मा की श्रष्टी भी सार्थक हो जाती है | …………………………………………………………….फ़िल्मी गीतों मैं ही आज से ४० साल पाहिले के गीत …..प्रकृति ,के रूप सौंदर्य , नारी शरीर के रूप सौंदर्य , प्रेम प्यार की अनोखी उपमाएं ,भावनात्मक अभिव्यक्ति सब कुछ मनमोहक था | ……………….क्या हैं आजकल के गीत ,क्या अलंकार हैं ,क्या अनुभूति है | किन्तु फिर भी चलती यही है | यही समय की धार है | ………………………………………………………………..एक कुल है जिसकी परम्पराएँ हैं ,किन्तु वह भी एक सी नहीं रहती समयानुसार बदलती जाती हैं | ऐसे ही आजादी के समय कांग्रेस बनी तो हिन्दू विचारधारा वाली जनसंघ बनी ,समय बदला जनता पार्टी बनी , फिर भारतीय जनता पार्टी ,…| राज धर्म अपनाया तभी तो अपने को बदलते रहे विचार बदले व्यक्ति बदले ,देश बदले ,समश्यायें बदली , तभी तो सत्तारूढ़ हो सके | तब का वर्तमान भूत बन गया है | अब जो वर्तमान है उसमें जीना है ,वर्तमान की परिस्तिथियों मैं जीना है | वर्तमान के अनुसार ही कर्म करना है | भूल जाओ भूत को ,| कुनवा जोड़ना है तो सब कुछ सहना होगा | यही राज धर्म है | ………………………………………………………………………राज धर्म के अनुसार जनसंघ से जनता पार्टी ,भारतीय जनता पार्टी ,वर्तमान भारतीय जनता पार्टी और उनके विचार विभिन्नता सभी कुछ राज धर्मानुसार ही तो बरत रहे हैं ,तो स्वधर्मी ही तो हुए | कौन सा राज धर्म त्यागते सन्यास अपनाया | कवि यदि अपने स्वधर्म अपनाते कविता रच कर महान कहलाता है तो राज धर्म अपनाते हम सब भी स्वधर्मी ही तो कहलायेंगे | यदि हम अपना स्वधर्म त्यागेंगे तभी तो नष्ट भ्रष्ट होंगे | ……………………………………………………..वर्तमान की समयानुसार कविता जो रचनी है तो सर्व रुचिनुसार ,स्वर लय को ध्यान मैं रखते ही रची जाएगी तभी लोक प्रिय हो सकती है | यही सब कुछ राज धर्म मैं भी धयान रखना होगा तभी अश्वमेघ यज्ञ सा अभियान सफल हो सकेगा | ………………………………………………………………………...एक बार फिर गीत सुगम हो जायेंगे और सम्राट के दरबार भी राजधर्म से गुंजायमान हो जायेंगे | ……….……………………..ओम शांति शांति शांति

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply