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स्वामी स्वरूपानंद की ”शह” रामदेव को …….

PAPI HARISHCHANDRA
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भारतीय जनता पार्टी की हिन्दुओं को सगठित करने की कूटनीति चुनाव जीता ले गयी | जिसके चाणक्यीय मोहरे रहे बापू आशाराम बापू जी , स्वामी रामदेव जी ,जिसकी कोई काट कांग्रेस नहीं कर पाई | अब स्वामी स्वरूपानंद के रूप मैं शेर को सवाशेर चाणक्य का उदय हो चूका है | बिलकुल सही स्थान पर ज्ञानी साधु संतों ,साई भक्तों के हृदय पर दर्द पैदा कर दिया है | तथ्य दोनों तरफ उचित ही हैं | विवाद आरम्भ हो चूका है | शास्त्रार्थों के विलुप्त होते समय मैं शास्त्रार्थ का नया विषय उदय हो चूका है | यही तो चाणक्यीय चाल थी संगठित हिन्दुओं मैं विखराव की | आज सनातनी और साई भक्त विखर चुके हैं | कल शैव ,वैष्णव ,कृष्ण भक्त ,देवी भक्त ,द्वेत ,अद्वैत ,जैन ,बौद्ध ,ब्राह्मण क्षत्रीय ,वैश्य ,शूद्र ,जाने कितने असंख्य सम्प्रदायों से बनी हिन्दू परंपरा अपने अपने धर्म के पत्ते खोलती विभक्त होती जाएगी | ……………………..अब रामदेव खामोश क्यों हैं क्या वे साई भक्तों को सनातन धारा मैं फिर बहा सकते हैं | क्या साधु संतों धर्माचार्यों को संतुष्ट कर सकते हैं | सभी के अपने अपने धर्म शाश्त्र खुलते जायेंगे | १८ पुराणों मैं अपने अपने पुराण देव को ही प्रधानता देते ,श्रष्टी का कारक .पालक .संहारक शक्ति माना जाता है | क्या वे फिर अपने अपने आराध्यों को प्रधानता देते मंदिर ,संप्रदाय हो जायेंगे | ..मेरा ईश्वर ही महान है ,यह कहकर विभाजित होते जायेंगे | क्या सनातनी, साई मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटाने का मुहीम छोड़ती नजर आएंगी | क्या साईं को भगवन से विशाल आकार मैं प्रमुखता से स्वर्ण मंडित दिखाना क्या सनातनियों को दुखित नहीं करता रहेगा | ………………………………………………………………....हिन्दू धर्म कोई धर्म है ही नहीं | मुस्लिम जगत के लिए सिंधु नदी के पार सभी हिन्दू कहलाये ,जो कि काफिर रूप गाली ही थी | समय की चाल देखिये वही गाली विभिन्न संप्रदाय ,सनातन ,वैष्णव ,शैव ,देवी भक्त , ,सिख जैन ,बौद्ध , ब्राह्मण ,क्षत्रीय ,वैश्य ,शूद्र , को जोड़ती हिन्दू कहलाई और विकसित होती गयी | और अंग्रेजो के आगमन से और भी मजबूत बंधन मैं बंधते हिन्दू रूप मैं विकसित होते गए | सूर ,कबीर ,तुलसी की भक्ति धारा और भी एक सूत्र मैं बांधती गयी | उसी भक्ति धारा मैं भक्तों ने साई भक्ति धारा भी अपना ली किन्तु संस्कार सनातनी थे अपने आराध्यों को भी जोड़ते भक्ति धारा मैं बह गए | …………………………………………………………………..…क्या स्वामी स्वरूपानंद जी को शंकराचार्य जी की पीठों को स्थापित करने का उद्देश्य स्मरण करना होगा | रसातल को जा रहे सनातन धर्म को संजीवनी प्रधान करना ही उद्देश्य था | आज जब उनके नीव को सशक्त आधार मिलते हिंदू साम्राज्य का चमकता सूर्य उदय हो रहा है | चाहे किसी भी तरह हो ,सूर ,कबीर ,तुलसी ,साई बाबा | उनके सफल प्रयास को नहीं नकारना चाहिए | राजनीती का भी भरपूर सहयोग रहा | भारतीय जनता पार्टी हिन्दू राजनीती करके लाभ ले रही है तो उसमें हिन्दू जागरण उचित ही है | इतने सफल विकसित बृक्ष की जड़ों मैं चाणक्यीय मट्ठा डालना क्या सब किये कराये मैं पानी नहीं फेर देगा | राजनीतिज्ञ तो अपने कर्मों का फल भोगते जायेंगे | ………………….अच्छा बुरा सब नगण्य कर देना ही उचित होगा ……………………………………………………………………………………....गीता मैं भगवन कृष्ण ने कहा भी है …………………………………………………………………..जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक पृथक सब भूतों मैं एक अविनाशी परमात्मभाव को विभाग रहित ,समभाव से स्थित देखता है ,उस ज्ञान को सात्विक जान || …………………………………………………………………सर्वोदय मंदिर मैं हम विचार विभिन्नता के कारण मुसलमानों को नहीं जोड़ पाते हैं | तो एक हिन्दू रूप मैं ८० करोड़ लोगों को तो जोड़ ही रहे हैं | ………………………………………………………………………….ओम शांति शांति शांति

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