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सूर्पनखा ने किया रावण का अंत

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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.क्या लक्षण ,कुलक्षण ही बनाते हैं स्त्री को त्रिया चरित्र वाली या सुशील….? गृह दोष बनाते हैं | संस्कार बनाते हैं ..| असीम शक्ति बनाती है | या अपने आप उपजने वाली शक्ति है | क्या सुपनखा ने रावण का अंत चाहा था उसने तो अपने भाई का साम्राज्य बढ़ाने के लिए अपने प्रेमी को भी न्योछावर कर दिया था | भाईयों से मानसिक सुख सुविधाओं के लिए अपने को सारे जीवन बेचती रही | ……यही दुर्बुद्धि मान्सिक्ताएं होती हैं सुपनखाओं की त्रिया चरित्रीयों की | कौन समझा सकता था ऐसी सुपनखाओं को किसको अपनी गर्दन कटवानी थी | समाज मैं भी ऐसी उल्टी विचारधाराएँ रावणो के महल ढहाती रही हैं |………………………………………………….त्रिया चरित्र भी क्या कूटनीति होती है राजनीती भी उसके सम्मुख नतमष्तक हो जाती है | दूसरे अर्थों मैं त्रिया चरित्र की ज्ञाता ही राजनीती है | जैसे स्त्री अपने हाव भाव से ,आँशु .भय शोक ,..से रिझाती है | तो राजनीती भी अपने त्रिया चरित्र से ही सब अपने बस मैं कर लेती है | ……………………………….……स्त्री की अपने प्रेमी पर अलग भाव लेती है | अपने पति पर लगता है वो सिर्फ उसी की है | भगवन के सन्मुख साध्वी सीता अनसुईया ही लगती है | संतान पर माँ का दुलारा भाव जो संतान को भाव विहल कर देता है | पति और प्रेमी की भावनाओं से तो एक राजनीतिज्ञ की तरह ही खेलती है | बेचारा पति या प्रेमी अपनी जान तक लड़ा कर उसके नखरों को झेलता रहता है | राजनीतिज्ञ की तरह एक कार्य संपन्न हो जाने पर दूसरे का त्रिया चरित्र आरम्भ हो जाता है | हिन्दू ,मुस्लमान सिक्ख ,ईसाई व अन्य लोगों की तरह सभी अपनी प्रेयसी से नेता को अपना मानते नाचते रहते हैं …………………………………………………….ओम शांति शांति शांति

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