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भक्त शिरोमणी “महात्मा मनमोहन सिंह” सादर प्रणाम …बहुत याद आओगे

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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,,हिन्दू धर्म के महान कृष्णोपदेश गीता को अपने अंग से सदैव चिपकाये अपनी आत्म शक्ति बनाये रखने वाले महात्मा गांधी जी यदि गीता के आईने मैं देखें तो मनमोहन एक महान महात्मा ही दिखेंगे | …………………………………………………..कुछ गीता की तराजू मैं देख रहा हूँ वही गीता के अंशों से तुलना करते ……………………………………………………………………………...भक्तशिरोमणी के रूप मैं ……………………………..अपने आराध्य को ,अपनी इन्द्रियों के समुदाय को भली भाँती वश मैं कर के ,मन बुद्धि से परे ,सर्वब्यापी ,अकथनीस्वरूप ,और सदा एकरस रहने वाले एकीभाव से ध्यान करते भजते हैं | सम्पूर्ण कर्मों को अर्पण करते नित्य चिंतन करते भजते हैं | भगवन कहते हैं कि ऐसे प्रेमी भक्त का मैं उद्धार करने वाला होता हूँ | केवल मेरे लिए ही कर्म करने के लिए परायण हो जा | द्वेषभाव रहित ,स्वार्थ रहित ,प्रेमी ,दयालु ,अहंकार से रहित ,सुख दुखों की प्राप्ति मैं सम और क्षमावान है ,हर्ष ,अमर्ष और उद्देगादी से रहित है ,आकांशा से रहित ,भीतर बाहर से शुद्ध ,पक्षपात से रहित ,जो कभी हर्षित नहीं होता ,द्वेष नहीं करता न शोक करता है ,न कामना करता है ,जो शत्रु मित्र मैं ,और मान अपमान मैं सम है ,आसक्ति से रहित है ,जो निंदा स्तुती को सामान समझने वाला ,मननशील और किसी प्रकार से भी शरीर का निर्वाह होने मैं सदा संतुष्ट है और रहने के स्थान मैं ममता और आसक्ति से रहित है वह स्थिर बुद्धि भक्तिमान मुझको प्रिय है | …….भक्ति के इन गुणों को आत्मसात करके निभाया है | तभी तो अपने अराध्या की शक्ति से सर्वप्रिय १० वर्षों तक प्रधानमंत्री पद सुशोभित किया है | महान वित्त विशेषज्ञ के रूप मैं जाने वाले महात्मा ने भारत की अर्थ ब्यवस्था को सम्पूर्ण विश्व मैं एक सम्मान दिलवाया | भारत को स्थिरता प्रदान की | अपनी भक्ति गुणों ,सहनशक्ति से ,देश को पार्टी को,सरकार को , जनमानुष को आत्मनिर्भरता की ओर गौरवान्वित किया | क्यों कि कहा भी गया है कि ” भक्ति मैं ही शक्ति” होती है …| ………………………………………………...कर्म योगी …..बनकर ….. ………………………….कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ..………को अपना धर्म मन कर कभी फल की आशक्ति नहीं की | और आशक्ति को त्यागकर सिद्धी और असिद्धि मैं सामान होकर कर्तव्य कर्मों को किया | समत्व भाव ही रखा | जो मिल गया आशीर्वाद समझ स्वीकार कर अपने कर्तव्य को निभाया | प्रधानमंत्री पद भी अपने कर्मों के फल से स्वतः ही आशीर्वाद की तरह मिलते गए कभी कामना भी नहीं की थी | जिस पद को संभाला उसे अपना कर्म का लक्ष्य मान लिया और उसे धर्म की तरह निभाया |

अपने कार्य काल मैं एक भी अवकास न लेने वाला कर्मयोगी ही होगा |
गीता के किसी योग को मनमोहन सिंह पर आत्मसात किया जाये सभी अपनी छवि से मेल कहते हैं | आत्मसंयम योग ,ज्ञान विज्ञानं योग ,राजविद्या राज गुह्य योग ,भक्ति योग किसी मैं भी देखो मनमोहन की छवि सटीक बैठती है | …………………………..……………………………….इस लोक मैं मनुष्य समुदाय दो ही प्रकार का है ,एक तो दैवी प्रकृति वाला और दूसरा आसुरी प्रकृति वाला | मन ,वाणी और शरीर कर्म से किसी प्रकार भी किसी को कष्ट न देना ,यथार्थ और प्रिया भाषण देना ,अपना अपकार करने वाले पर भी क्रोध न करना ,कर्मों मैं करता पन के अभिमान का त्याग ,चित्त की चंचलता का आभाव ,किसी की भी निन्दादी न करना ,सब प्राणियों मैं हेतु रहित दया ,इन्द्रियों का विषयों के साथ संयोग होने पर भी उनमें अशक्ति का न होना ,कोमलता ,लोक और शास्त्र के विरुद्ध आचरण मैं लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का आभाव ,तेज क्षमा ,धैर्य ,बाहर की शुद्धी और किसी मैं भी शत्रु भाव का न होना ,अपने मैं पुज्य्ता के अभिमान का आभाव ये सब दैवी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण होते हैं | इस दैवी प्रकृति मैं भी पूर्ण रूप से सिद्ध होते हैं मनमोहन सिंह जी …| ………………………………………………………………..ऐसे महा योगी व्यक्ति को आसुरी प्रकृति वाले लोगों ने अपने कार्य सिद्धी के लिए पापी सिद्ध कर सत्ता हथिया ली | जिस सत्ता का लोभ कभी नहीं रहा था ,सिर्फ लोक हित जन हित के लिए ,पार्टी हित के लिए सत्ता सीन रहे | पाप भी क्या सिद्ध किया मौन …| जो कि सब दुर्गुणों का नासक होता है | गुण ही दुर्गुण सिद्ध कर दिया | एक ८० वर्षीय बृद्ध दो बार हृदय का ओप्रेसन करवा चुके अनुभवी ,ज्ञानी यदि गाली गलौज नहीं करता तो यह उसका बड़प्पन ही होगा | न की अपराध …| युधिष्ठर ने तो ….न नरो कुंजो वा…… बोला था ………आपने तो कुछ बोला ही नहीं …| …………………खैर अब बचा हुआ कर्म सन्यास योग पूरा करते हुए सांख्य योग भी पूरा कर लेंगे | …………………………………………………………………………………..दम्भ ,घमंड ,और अभिमान तथा क्रोध ,कठोरता ,और अज्ञान भी यह सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं |..ऐसे असुरों ने आपको अपमानित किया है .ऐसे द्वेषी ,पापाचारी ,क्रूर कर्मी ,नराधम संसार मैं बार बार आसुरी योनी मैं ही जाते हैं | मैं जानता हूँ कि आप योगी पुरुष हो आप दुखी नहीं होगे किन्तु मैं हरिश्चंद्र बहुत दुखी हूँ कि एक हरिश्चंद्र को फिर पापी सिद्ध कर दिया | …………………………………………………………………दैवी सम्पदा मुक्ति के लिए और आसुरी सम्पदा बाँधने के लिए मानी गयी है | आप दैवी सम्पदा वाले संत हो आप की मुक्ति हो जाएगी किन्तु यह आसुरी सम्पदा वाले कर्म फल भोगते बार बार आसुरी योनी मैं जन्म लेंगे | …………………………………………………..अब आपको नमो नमः भी नहीं बोल सकता नमः ही कहना होगा या सादर दंडवत प्रणाम ही उचित होगा | शायद नमो से आपको दुःख होगा | …………………………………….. .ओम शांति शांति शांति

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