Menu
blogid : 15051 postid : 720642

श्रद्धांजली , ‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर ‘…..मैं तो चला

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
  • 216 Posts
  • 910 Comments

‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर ‘ कितना महान होगा वह व्यक्ति जिसने जिंदगी के 99 वसंतों को इस सिद्धांत पर खिलाया ,पहले वसंत मैं खिला खुसवंती फूल अंतिम वसंत मैं भी खिल कर ही गया | और सतक से एक कम पर आउट हो गया | लेखन क्या होता है कोई खुशियों के महासागर खुशवंत से सीखे | लिखना सभी को आता है | विके हुए लेखकों की तरह लिखना सभी को आता है | झूठ प्रपंच अतिशियोक्ति ,अलंकारों से अपने मालिक के गुणगान करना हर लेखक की शक्ति बनती है | किन्तु सत्य को वेधडक विना किसी बैर, द्वेष ,लालच ,प्रलोभन के लिख कर संतुष्ट करना यही सीखा जा सकता है खुसवन्त से | किसी राजा को ,राजनीतिज्ञ को भगवन बना देना लेखक की गुणवत्ता होती रही है | सत्य से परे किसी मैं हजारों सूर्यों की सी चमक दे दी जाती है ,हजारों हाथियों की शक्ति दे दी जाती है | किसी दवा को मृतसंजीवनी सिद्ध कर दिया जाता है | कितना महान बना देता है यह लेखक साहित्य्कार | एक झूट के महल पर राज्य स्थापित कर देता है साहित्य्कार | धन के लिए सम्मान के लिए विकाऊ बन जाता है | अब वर्त्तमान मैं लेखक का मीडिया रूप कितना विकृत हो चुका है शायद नहीं देखा गया | यही दुखवंत न बनते खुसवन्त सतक से पहिले चल दिए | ………………………………………………………………..जिस व्यक्ति मैं लेखन की यही विकृति किसी रूप मैं भी घर नहीं कर पायी ,वह व्यक्ती ही कहलाया खुसवन्त | शायद तभी सतक वीर बनते बनते चल गया | लेखन को सत्य मैं धरातल पर सच्चई से पिरोने वाला ही खुसवन्त सी खुशीयाँ विखेरता अब खुशीयों को सर्वत्र अंतरिक्ष मैं विखेरना चाह रहा है तभी सतक पूरा होने से पाहिले चल दिया | कैसे लिखा सत्य मनोरंजक ,सर्वपठनीय बिना किसी बैर ,या स्तुती के रचित होता है यही सीख मिलती है खुशीयों के महासागर मैं | भारतीय साहित्य का अलग धरातल होता है | कैसे विदेसी सहितीकारों के समकक्ष खड़ा किया गया खुसवंती महल ..? ……………………………….काम को भी एक सत्य की तरह स्वीकार करना और उसे मनोरंजक भारतीय परिपेक्ष्य मैं सर्वपठनीय ,मर्यादाओं मैं प्रस्तुत करना यही शैली की खासियत रही | कालिदास को ,रविंद्रनाथ टैगोर को ,सेक्सपीयर के साथ या अन्य पश्चिमी लेखकों के साथ सत्य्ता से एक माला मैं पिरोकर सत्य का आभास करा देना यही कला रही | ……………………………………………………....आधी दिल्ली के मालिक की संतान कहे जाने वाले भी , पूरे पाठक मनों पर अधिकार जमा चुके थे | लगभग सभी अखवारों मैं कालम लिख कर अपनी प्रतिभा के धनी सर्वत्र खुशी बाटते रहे | पदम् भूसण (१९७४) ,पद्म विभूसण (२००७) ,से सम्मानित की लोक प्रिय पुश्तकेँ ‘ ट्रैन टू पाकिस्तान’ (जिस पर फ़िल्म बनी ),और सिखों का इतिहास , डेल्ही, ‘द कंपनी ऑफ़ वूमेन ‘ रहीं | आपकी खुशनुमा ८० पुश्तकेँ छपी | विदेश मंत्रालय मैं ,आकाशवाणी मैं कार्य कर चुके खुशवंती ने ‘ योजना’ ,इलस्ट्रेड वीकली , न्यू डेल्ही ,और हिंदुस्तान टाइम्स मैं संपादन किया | राज्य सभा के मनोनीत सदश्य (१९८० से १९८६ ) रहकर राजयसभा को खुशहाल किया | ‘सच प्यार और थोड़ी सी शरारत’ आपकी आत्म कथा के चर्चित प्रसग बन गए थे | बल्व के अंदर बैठे खुशवंत का सबसे लम्बा पचास साल तक चलने वाला स्तम्भ ‘विद मलाईस टुवर्ड्स वन एंड आल ‘ था | ………………………………………………….…लेखको मुझे पहिचानो लिखना ही सब कुछ नहीं होता सत्य को धरातल पर सत्य्ता से मर्यादाओं मैं लिखना ही लेखन है | लेखक को पढ़कर मार्गदर्शन न हुआ तो लिखना पढ़ना सब वेकार | मनोरंजन करके समय ही विताना हो सकता है | यही हम सभी लेखकों की चिंतकों की खुशवंती श्रद्धांजली हो सकती है | अब खुशवंती खुशीयां सिर्फ स्वर्ग मैं ही मिल सकती हैं | इंतजार करो उस खुशनुमा घड़ी का जब खुशवंती चिंतन फिर पा सकोगे | ……………………………………………………………………. ॐ शांति शांति शांति |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply