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बैरी वसंत न आ तू ,प्रणयोत्सव contest

PAPI HARISHCHANDRA
PAPI HARISHCHANDRA
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image not displayed…………………..वासनाओं का संत यानि वसंत, वसुंधरा पर वसंत पंचमी से वासोन्मुख होता है | हर संत वासनाओं से भीगे बिना नहीं रह पाता है | एक ही रास्ता होता है संत के लिए …या तो ब्रह्म भजन कर ब्रह्म मैं लीन हो जाये या वासंती कामनाओं मैं खोकर मग्न हो जाये | वसंत मैं इस मिथ्या चंचल संसार मैं या तो उन्हीं के दिन अच्छी तरह व्यतीत होते हैं ,जो ब्रह्म ज्ञान मैं लीन रहते हैं अथवा उन्हीं के दिन अच्छी तरह कटते हैं ,जो सख्त और मोटे कूचों तथा गुदगुदी जाँघों वाली यौवनाओं को अपने शरीर से चिपटाए ,काम की उमंग से मस्त हो ,भोग विलास का आनंद लेते हैं | वासना युक्त होकर वसंत ….| वासना विहीन होकर व संत ….यानि वासना विहीन भी डूबना ही है ब्रह्म मैं …| ………………………………………………….सुगंधी युक्त पवन चला करता है ,ब्रक्षों की शाखाओं मैं नए नए अंकुर निकलते हैं ,कोकिला मदमस्त या उत्कंठित हो मधुर कलरव करती है |…………………………………. स्त्रीयों के मुखविंद्र पर मैथुन परिश्रम से निकले हुए पसीनो की हल्की हल्की धारें मजा देने लगती हैं | ………………………………………………………………………………………उस वसंत की रात मैं किसे काम पीड़ित नहीं करता है | वसंत कामदेव का साथी और ऋतुओं का राजा है | इस ऋतू मैं बौरे हुए आम के ब्रक्षों की सुगंध से सुगन्धित बायु ने धीरज रखने वाली कामनियों के ह्रदय मैं खलबली मचा दी है | इस ऋतू मैं कामदेव स्त्रीयों के नाजुक ,गौरण ,मतवाले और बारम्बार जम्हाईयां लेते अंगों को शृंगार रस मैं मग्न कर देता है | वसंत मैं नामर्द भी मर्द हो जाता है | स्त्रीयों को तो इतना मद छा जाता है कि वे सीना उभारकर और अकड़ कर चलती हैं | रसीले और छैल छबीले पतिओं के पास रहने पर भी नहीं दबती ,बल्की उत्कंठित ही रहा करती हैं | भोगविलास से शिथिल होकर कुछ समय तक अपनी प्यारी के पास आराम करना ,कोकिलों के मधुर शब्द सुनना ,प्रफुल्लित लतामंडलों मैं टहलना ,चन्द्रमा की शीतल चांदनी की बहार देखना ,किसी किसी भाग्यवान के नेत्रों को ही सुखी करती हैं | मधुर मकरंद को पी पीकर भौरें उन्मत्त हो रहे हों ,ऐसे ऋतुराज बसंत मैं किसके मन मैं काम वासना का उदय नहीं होगा | पुरुष स्त्रीयों से और स्त्रीयां पुरुषों से मिलन को तड़फड़ाने लगती हैं | बड़ी बड़ी मानीनियों का गर्व खर्व हो जाता है | जो दम्पत्ती एकत्र होते हैं ,वे इस ऋतू का स्वर्गानन्द भोगते हैं जो दूर दूर होते हैं या भाग्य के मारे होते हैं विरह की आग मैं बुरी तरह तड़पते हैं |………………………………………………………………………………………………….. बिरही स्त्री पुरुषों के लिए वसंत काल के समान है …………………………………………………..ऋतुराज वसंत कोयल के मधुर मधुर शब्दों और मलय पवन से विरही स्त्री पुरुषों के प्राण का घातक बनता जाता है | बड़े ही दुःख का कारक बन जाता है | विपत्ति काल मैं जैसे अमृत भी विष हो गया हो | कर्मों का फेर या दुर्दिन के कारण ,विरही स्त्री पुरुषों को मछली की तरह तडपाते हैं | विरह बेदना से विकल कामिनी सुगंधित पवन को आग और राजमहलों को भी वन समझकर मछली सा तड़पती है | चन्दन ब्रक्षों मैं बसने वाली सापों के मुख से निकली हुयी हवा के सामान गरम सांसे भरती है | कोयल की वाणी विष सी लगती है | इस दशा मैं नवीन कोमलांगी किस तरह अपने प्राण बचाएगी …? …वसंत मैं कैसी दुर्दशा होती है विरहीयों की |………………………एक विरहिणी वसंत मैं अपने प्रियतम के न पाने पर स्वपति ,कोकिला ,कामदेव ,और चन्द्रमा ,पवन पर कैसी कुपित होती है और बदला लेने की भी ठान लेती है |………………….वसंत की रात आ गयी पर मेरे प्रियतम न आये इसलिए मेरे प्राण किस काम के | अगर मरने के बाद जन्म होता हो ,तो मैं कोकिल की आवाज बंधन के लिए ब्याध बनूँ |चन्द्रमा का नाश करने के लिए राहु बनूँ | कामदेव के संहार के लिए शिवजी के नेत्र की किरण बनूँ | यानी कि वसंत मैं ये सब जिस तरह मुझे सता रहे हैं ,मैं भी बदला लेते इन्हें सताऊं |………………………………………विरहीयों के अलावा दमा स्वाश रोगी ,कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले ,सर्दी जुखाम के रोगी भी यही चाहते रहे हैं कि हे भगवन न तड़पा ,न आ ना आ वसंत …| कामांध, अविवेकी ,.तो वरदान मानकर इसका राक्षशों सा उपयोग कर देते हैं | पीड़ित भी शायद यही चाहें कि भगवन न भेज न भेज वसंत को और बलात्कार करने पीड़ित करने के लिए …| जितने अपराधी यह राक्षस हैं उससे ज्यादा यह वसंत जो उकसाने का दोषी है कामदेव तो प्रकृति जन्य है ही …|

………. कामेन विजितों ब्रह्मा ,कामेन विजितों हरिः | कामेन विजितः शम्भू ,शक्रः कामेन निर्जितः ||

………….…जिन्होंने बृह्मा,विष्णू ,महेश को मृगनयनी कामिनियों के घर का काम धंधा करने के लिए दास बना रखा है ,जिनके विचित्र चरित्रों का वर्णन बाणी से नहीं किया जा सकता है उन पुष्पायुध भगवान कामदेव को हमारा प्रणाम सत सत प्रणाम है |

ॐ शांति शांति शांति

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