इडियट्स ‘क्यों इन बेशर्म मूर्खों .? .भारत रत्न कृतार्थ हुआ
PAPI HARISHCHANDRA
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हे प्रभो ,अन्नदाता आप मुर्ख कैसे हो सकते हैं …| आपके इसारे पर तो यह सारा जग चलता आया है | ,आप धर्म के संस्थापक हो | जिस नियम को आप बनाते हो वह धर्म हो जाता है | आपके इसारे पर हम लड़ मरते हैं | …अपने देश में साम्प्रदायिक रूप में ,दूसरे देशों से सैनिकों के रूप में ,,,,,,| ,परमेश्वर के बाद हम तो आप को ही प्रतक्ष्य भगवन अन्नदाता मानकर चमचागीरी भक्ति करते रहे हैं आप राजा के रूप में रहो ,या प्रजातान्त्रिक शासक ,हम आपको भगवन के रूप को ही मानते रहे हैं | आप कैसे मुर्ख हो सकते हैं ,?
आप सत्तारूढ़ होने या सत्ता च्युत करने मैं जो बुद्धिमानी पूर्ण चालें चलते हैं यह किसी मुर्ख के बस का नहीं हो सकता | कितना विकसित मन मष्तिष्क होता है आपका ,,,,| दीन हीन गरीब आपके बुद्धी प्रताप से रोजी रोटी पाते रहे हैं | आप कैसे मुर्ख हो सकते हो ,? आप अपने बुद्धिमत्ता से शत्रुओं को परास्त कर देते हो ,धर्मात्मा को अधर्मी , ,अधर्मी को सत्ता सिंघासन दिला देते हो | मुर्ख लोग जिसको साजिश कहते हैं ,वह सभ्य भाषा मैं राजनीती कहलाती है | मुर्ख ही होते होंगे जो राजनीती जैसे महान शब्द मैं हर स्थान पर साजिश की बू पाते हैं या मानसिक फोबिया के शिकार होंगे आपकी बुद्धिमानी से हमारा धर्म बचा रहता है | हम गर्व से अपने धर्म को मानते हैं | हमारा धर्म, समाज , जाति, उन्नती करती रही है | प्रभो हम अपना खून का एक एक कतरा भी न्योछावर कर आपके अहसानों से ऋणमुक्त नहीं हो सकते | आपकी बुद्धिमानी से तो रावण ,कंस ,कौरवों ,हिटलरों ,तानासाओं ,आपातकाल जैसे भयानक राक्षशों का अंत हुआ | आप कैसे मुर्ख हो सकते हो
मेरे से जाने अनजाने मैं ,आमोद प्रमोद मैं या अहंकार वश कुछ अपशब्द निकल गया हो तो क्षमा करना ,क्यों कि मैं जानता हूँ कि आपका आशीर्वाद मुझे सब कुछ दे सकता है तो आपका श्राप भी मिटटी मैं मिला सकता है ,|………………
प्रभो महाभारत मैं आपके विराट रूप से भयभीत अर्जुन को भी आपसे क्षमा मांगनी पढ़ी थी ,|………………….पितासि लोकस्य चराचरस्य त्वमस्य पूज्यस्य गुरुरगरीयां | न त्वत्समो अस्त्याभ्यधिकः कुतोन्यो लोकत्रयेप्य प्रतिम प्रभाव || ……………………………..आप इस चराचर जगत के पिता और सबसे बड़े गुरु एवं अति पूजनीय हैं | हे अनुपम प्रभाव वाले तीनों लोकों मैं आपके समान भी दूसरा कोई नहीं है ,फिर अधिक कैसे हो सकता है,…………..||तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायम प्रसादये त्वमहमीशमीडयम | पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढूम || ……………………………………………………..अतएव हे प्रभो ‘मैं शरीर को भली भाँती चरणों मैं निवेदित कर ,प्रणाम करके ,स्तुती करने योग्य आप को प्रसन्न होने के लिए प्रार्थना करता हूँ | हे देव ‘ पिता जैसे पुत्र के , सखा जैसे सखा के ,और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं ;वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने की कृपा कर अनुग्रहित करें ,||……………………………………………………………………………आज मैंने अनुभव किया कि आपने मुझे क्षमा कर अनुग्रहित किया | प्रभो मैं धन्य हुआ | मेरे पिछले सात वंशजों का और अगले सात वंशजों का उद्धार आप ने कर दिया | मैं धन्य हुआ, ……. कृतार्थ हुआ ………………………………………………जय हो ………………………………………………जय हो ……………………………………..ॐ शांति शांति शांति ,,
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