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अभी नहीं ‘अभी नहीं ‘ भारत रत्न की खोज के नए मानक ,अभी नहीं ,….हे भगवन ‘ पहले मेरे भारत के रत्न को भारत रत्न बनने दो ,फिर नए मानकों की खोज में लगना..| हर बार तो सत्तारूढ़ पार्टी का प्रधानमंत्री ही अपनी पसंद का भारत रत्न चुनता आया है ,अब जब मेरी सरकार बनने वाली है तो मेरी पार्टी के प्रधानमंत्री की पसंद का भारत रत्न क्यों नहीं चुनने देते हो ..?…………….नियमानुसार भारत रत्न के लिए नाम प्रधान मंत्री द्वारा प्रस्तावित किया जाता है ,और राष्ट्रपती उसे स्वीकृती प्रदान करता है मंत्रीमंडल का कोई हस्तक्षेप नहीं होता ,………..नियमानुसार यह सम्मान साहित्य और विज्ञानं की प्रगती में उत्कृष्ट सेवा तथा उच्चतम स्तर की जन सेवा को मान्यता देने के लिए दिया जाना चाहिए | ………..लेकिन विडम्बना यह क़ि अभी तक साहित्य के क्षेत्र में किसी को भी भारत रत्न नहीं मिला …,कला के क्षेत्र में छह ब्यक्तियों को …,विज्ञानं के क्षेत्र में दो लोगों को दिया गया …,……….वहीँ सबसे बड़ा हिस्सा राजनीती के क्षेत्रों के शेरों को ही मिला ..,इससे यह महसूस होता है कि भारत की राजनीती में कला या साहित्य को कितना मान दिया जाता है ..,खासतौर से जिन राजनेताओं को भारत रत्न की उपाधी प्रदान की गयी वे सभी सत्तारूढ़ दल के ही थे ..,किसी सरकार ने विपक्ष के किसी महान ब्यक्ती को यह सम्मान देने की गलती की ..,क्या किसी भी गैर कांग्रेसी सरकार ने कांग्रेसी नेता को या किसी भी कांग्रेसी सरकार ने किसी गैर कांग्रेसी को यह उपाधी दी ..?….जयप्रकाश नारायण ,मोरारजी देसाई को भी सत्तारूढ़ सरकार ने ही नवाजा .,,……………………………………………..जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने तो पद पर रहते अपने आप को ही भारत रत्न से विभूषित किया ..,,……………………………………..फिर जब मेरी सरकार बनने वाली है तो क्यों नहीं मेरे प्रधान मंत्री को मेरे भारत का रत्न चुनने का अवसर देना चाह रहे हो …? ..,……………………….क्या कोई सही अर्थों का भारत रत्न ‘अबुल कलाम आजाद’ सा हो सकता है जिन्होंने यह भारत रत्न सिर्फ इसलिए अस्वीकार किया क़ि वह तब सत्ता में थे ..,.क्या अपने आप को सम्मान दिया जाना चाहिए ..?………………………………………….सवाल यह कि अटल विहारी वाजपेयी को क्यों कम आंका गया ..,?….अरे भाई ‘आप जो गलती कर चुके है उस को क्यों उजागर कर रहे हो ..?आप भी तो सत्ता में रहे ..,क्यों नहीं तब अपने को नवाजा ..,?१९७७ की जनता सरकार में क्यों भारत रत्न उपाधी को ही बंद कर दिया …?तब तो आप विदेश मंत्री थे सत्तारूढ़ थे …,आपने खुद भी भारत रत्न नहीं लिया और किसी को भी उपाधित नहीं होने दिया …,१९७७ ,१९७८, १९७९ ..,,में भारत रत्नों का सूखा काल ही बना दिया ..,,अब शायद इसलिए चुनाव प्रचार में विषय बनाकर बाजपेयी जी की महानता को भुना रहे हो ..,खैर तब गलती हो चुकी थी लेकिन अब हम सरकार बनाने ही वाले हैं हमारा प्रधान मंत्री भारत रत्न ही बनेगा ..,चुनाओं का समय है इस मुद्दे को दबा ही रहने दो तो बेहतर होगा हम सब के लिए ..,कुछ फायदा तुम उठाओ कुछ हम ..,…………………………………..सवाल यह कि पुनर्गठन समीति बननी चाहिए ..?क्या यह सरल होगा ..?सर्वाधिकार सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री के पास होते हैं ..,क्या सत्तारूढ़ पार्टी मौके पर मिले अधिकार को गंवाना चाहेगी ..?…होगा भी तो लोक पाल जैसी स्तिथी नहीं आयेगी ..,इसलिए मिलबांट कर खाओ ,..,जो होगा सब अच्छा ही होगा ..,ॐ शांति शांति शांति
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