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समाज के महान चिंतकों द्वारा समाज सुधार के लिए बनाये नियम धर्म का रूप लेते है राजा शासकों द्वारा बनाये नियम कानून का रूप लेते है ,कानून का पालन मजबूरी है. वहीँ धर्म अंतर आत्मा की आस्था है ,जहाँ धर्म शब्द आता है वहां आस्था ही आती है ,आस्था विहीन धर्म नहीं कहा जा सकता आस्था विहीन ब्यक्ति इसी धर्म को अंध श्रद्धा ,आडम्बर रुडिवाद ,अज्ञान ,पिछड़े अदि अलंकारों से आलोचना करते है ,जहाँ आलोचना हो वहां आस्था भक्ति नहीं रहती ,मन की शांति ,अशक्तता ,किंकर्तब्य विमुद्ता ,भय ,आकांक्षा ,मनौती ,वाली अवस्था में फिर अंध भक्ति से आस्थावान होकर शरणागत हो जाते है ,आलोचना अलग विधा है धर्म समझकर कर्तब्य निभाना अलग ,,आलोचक बनना सुगम है ,,स्वयं निभाना कठिन ,,बस यही समझो इसी तरह धर्म मय हो जाते है.
क्या हैं माँ दुर्गा और उनकी शक्ति: जिनके आगे हम नत मस्तक हो जाते है आस्था से पूजते हुए मनौती मांगते हुए ,सुगमता से आशीर्वाद पाने की आकांक्षा रखते है ,मनौती पूर्ण होने पर और भी श्रद्धा माय होकर जय जय कारे करते है. देवी भागवत, दुर्गा सप्तसती के अनुसार जब देवता अपने अपने कर्तब्यों से विमुख होकर शक्तिहीन ,श्री हीन हो चुके थे और असुर अपनी राक्षसी शक्तियों से बलवान हो चुके थे,असुरों ने देवताओं को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार जमा और देवताओं की शक्तिओं को छीन कर उन्हें श्रीहीन कर निकाल दिया तब निरास,शक्तिहीन श्रीहीन देवता ब्रह्मा जी को आगे कर, भगवन शंकर के शरणागत हुए उन्होंने स्तुति बिनती प्रार्थना कर शिव जी की आराधना की.
इसी प्रार्थना स्तुति विनती की कारुणिक पुकार से देवताओं की सुसुप्त शक्तियां उनके शरीर से निकलकर एकाकार हो संगठित रूप में प्रकट हुयी जिनको देवताओं ने अपनी अपनी अस्त्र शास्त्र विद्याओं ,कुशलताओं ,से सुसज्जित कर एक शक्ति का रूप दिया ,ये शक्ति स्वरूप देवी ही मां दुर्गा के रूप में विख्यात हुयी,,, मां दुर्गा ने ही कालांतर में राक्षसों असुरों दुष्टों का संहार कर देवताओं को उनकी शक्ति ,श्री अधिकारों सहित पुनः पदासीन किया ,, तब देवताओं ने देवी की आभार सहित करुणा से भरे शब्दों से स्तुति प्रार्थना की ,यही देवताओं द्वारा स्तुति प्रार्थना के श्लोक ही मानवों के लिए सिद्धी का कारक बने ,दुर्गा सप्तसती का एक एक श्लोक अलग अलग कार्यों की सिद्धी साधना का मंत्र बने. यह एक सत्य है.
माँ दुर्गा समस्त देवताओं की संकलित रूप हैं श्रदेय और भी हो जाती हैं जिन्होंने देवताओं के दुश्मनो को परास्त कर उन्हे पुनः अधिकारों से युक्त किया ,उन्हीं माँ दुर्गा की स्तुति प्रार्थना कर हम पापी मनुष्य अपनी शांति के लिए, दुष्टों ,शत्रुओं के नाश के लिए ,मनौती के लिए ,क्यों नहीं प्रसन्न कर सकते है ,अपने अपने कार्य के अनुसार मत्रों का सम्पुट जप कर ,या अपनी अपनी योग्यता अनुसार ,अपनी अपनी भाषा में ,अपने अपने शब्दों से आराधना कर मन वांछित वर की कामना करते हैं.
माँ दुर्गा समस्त देवताओं की संगठित एकाकार शक्ति है ,वह आम नारीयों सी मानव राक्षस या अन्य जीव नहीं मनुष्यों में मानवीय गुणों से युक्त नारियां ही होती हैं उनकी तुलना माँ दुर्गा से नहीं की जा सकती ,मनुष्य जो कर्म करता है वो अपने स्वाभाव बस ही करता है और उसका फल भी भुगतता है ,आम नारीयों की तुलना माँ दुर्गा से गलत है ,आम स्त्री अपने अपने हित साधना के लिए किसी भी रूप को ढाल लेती है जिस हित साधना की कल्पना करती है उसी के अनुसार ब्यवहार करती है यह प्रकृति के नियमों के अनुसार स्वाभाविक ही है ,मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज में अपने आप को सामंजस्य के लिए यह स्वाभाविक है ,इसी तथ्य को द्रस्तिगत रखते हुए मनुष्य में स्त्रीयों के प्रति सोम्य धारणा बनाने के लिए समाज को शांत रूप देने के लिए हर स्त्री में माँ दुर्गा का रूप उजागर करने का प्रयास किया गया.
मन को शांत रूप देने के लिए ,हर स्त्री में मां का रूप उजागर करने का प्रयास किया गया ,लेकिन प्रकृति के गुणों को मनुष्य नहीं बदल सकता ,वोह सुधार की कोशिश कर सकता है ,लेकिन विरुद्ध नहीं जा सकता. जहाँ हम स्त्री में मां बहिन या देवी का रूप उजागर करते धर्म बनाते है ,वहीँ उसमे मेनका ,रम्भा ,अप्सरा ,सेक्सी गरम ,कामुक ,नंगा पन भी उजागर किया जाता है ,जो की हमें समाज में हर कोण में द्रश्य होता है घर बाहर गली मोहल्ले ,स्कूल कॉलेज ,ऑफिस ,टी वी ,कंप्यूटर ,इन्टरनेट ,फिल्मो ,मोबाइल आदि में भरपूर परोसा जाता है एक ओर हमें आस्था भक्ति से ओत प्रोत भाव आते है ,,तो वहीँ दूसरी ओर कामुकता पूर्ण ,,,,,यही स्त्रीयों की भी प्रकृति है किसी भी रूप में कर्म दुष्कर्म से पीछे नहीं हटती हैं जो समाज में द्रस्तिगोचार होता रहता है ,,एक ओर जहाँ धर्म हमें नैतिकता की ओर मोड़ता है ,वहीँ हमारी दिनचर्या पाप कर्मों की ओर धकेलकर सब किये कराये पर पानी फेर देती है.
अतः समाज में धर्म की स्थापना का यह प्रयास ही है जिससे मनुष्य पाप कर्मों से दुराव कर पाए एक शक्ति के सामने नतमस्तक हो कुछ तो नैतिक और धर्ममय होता है. मनुष्य या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता ,, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ऐश्वर्यं यतप्रसादेन सौभाग्य रोग्य सम्पदः ,,शत्रु हानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किम जनः सर्व बाधा प्रसंनं त्रैलोकस्य खिलेश्वरी ,,,एवमेवत्वया कार्यमस्य द्वेरी विनासनम सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके ,सरन्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते. सर्व रूप मयी देवी, सर्व देवी मयम जगत ,,अतोहम विश्व रूपाम ताम नमामि परमेश्वरीम.
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी भी दावे, आंकड़े या तथ्य की पुष्टि नहीं करता है।
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